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1 Feb 2021 · 1 min read

लिखता रहा इश्क भरे खत

लिखता रहा इश्क भरे खत
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लिखता रहा इश्क भरे खत पर मैं उनको जलाता रहा,
इस तरह मोहब्बत के सबूत मै हमेशा मिटाता रहा।

चलता रहा ये सिलसिला उसकी मोहब्बत मे तडफता रहा,
मुलाकात कैसे करू उससे यह हमेशा ही सोचता रहा।

इतफाक से एक दिन उससे बाजार में मुलाकात हो गई,
दोनों की आंखें चार हुई पर शर्म से आंखे शर्मशार हो गई।

सिलसिला चलता रहा मिलने का कभी बाजार या मंदिर में,
उथल पुथल मची थी मोहब्बत की दोनों के मन के अंदर में ।

मिलते मिलते दोनों की मोहब्बत अब जवान हो चुकी थी,
कैसे तोड़े दुनिया की रस्में ये मोहब्बत परवान हो चुकी थी ।

हो गई थी सगाई उसकी मेरे किसी करीबी दोस्त से,
कैसे करता इजहार मोहब्बत की कहानी अपने दोस्त से।

एक तरफ थी दोस्ती एक तरफ था मोहब्बत का यह सवाल,
मचा था तीनों की जिंदगी में यह मोहब्बत का अजीब बवाल।

राम कृष्ण रस्तोगी गुरुग्राम

53 Likes · 95 Comments · 2349 Views
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