लाल लिपस्टिक की भूख : मानवता की मौत
आलू खाकर मर सकता है
एक आदमी/और
बिना जहर पीये मर सकती है
एक औरत।
और बच्चों की मौत का मैं कोई तरीका नही बता पाता हूँ।
(यह आसान है)
भावी आत्महत्या पीड़ितों के लिए/इन्हें
हासिल करना काफी मुश्किल है।
हम घरों के अंदर तक जायेंगे
खाली पड़े खण्डहरों तक
पहुंचेगी हमारी कविता/आवाज़
क्योंकि ज्यादातर आत्महत्याएं
शाम को या रात में होती हैं।
हाँ,
बिलकुल
मेरी बाँहों में परमाणु नही है
यह बात अंदर तक आपको कचोट देगी
आपको ही नही बल्कि विज्ञान के लाखों शोधकर्ताओं को भी
मैं मज़बूर हूँ,
इसलिये कहता हूँ
मेरी बाहों में परमाणु नही है।
आइंस्टीन को अपनी समीकरण वापिस ले लेनी चईये
और गुटेनबर्ग को
अपना छापाखाना भी बन्द कर देना चईये।
आप और हम मिलकर
एक दुसरे चाँद को देख सकते है
हम वहां तक जायेंगे
जैसे घरों तक गए थे।
हमारे साथ एक दूरबीन होगी
और
उसमे हम एक आदमी को दूसरा आदमी काटता देखेंगे।
आपकी नज़रों में आपका बैडरूम दिखाई देगा
और आपके सपनो की
एक -दो लाश भी वहीं पड़ी होगी
यह “सीन” देखकर एक छोटा अमरुद हंसेगा
मैं
उसको हंसने का मतलब पूछता हूँ तो
मेरी दादी की कही बात याद आ जाती है
(इसलिए मैं नही पूछता।)
वहां रेडियो नही होगा
और आदमी कटा हुआ हाथ खाता होगा (अपना वाला)
आप
यह सोचकर दुःखी नही होते
कि
आपकी उम्र का एक एक दिन घटकर मरता जा रहा है
एक दिन का मतलब घड़ी उल्टी घूमती है।
हम सब देख लेंगे/लोगों को लड़ते हुए,
एक लाल लिपस्टिक की भूख के लिए हम,
अवाज़ नहीं करेंगे
और आंदोलन का नाम ऑक्सफ़ोर्ड वाली डिक्सनरी से मिट जायेगा। आपको पता है न
भूख हड़ताल से अंततः मृत्यु हो सकती है।
मैंने कभी नही देखा कि सूरज और चाँद एक दुसरे का आलिंगन करते हैं,
धरती के सारे जीव मर चुके है,
खाद्य श्रंखला के ऊपर रेड क्रॉस है।
यह एक सार्वभौमिक सत्य कैसे हो सकता है
कि
हमले के बाद अपराधी पकड़े जाने से पहले आत्महत्या कर लेता है।
जब ऐश्वर्या राय
अपने कमरे में लाइट जलायेगी तो आप अपने क्रन्तिकारी विचारों के टुकड़ों को पिपरमिंट में डालकर आत्महत्या होने की संभावित जगह पर रख देंना।
इसकी स्मेल से “हथियारों” का दम घुटेगा/
और
वे मर जाएंगे।
मेरा कोई घर नही था,इसलिये लोगों के घरों में घुसकर
मैंने तीन तिहाई कविताएँ लिखी थी।
– कत्ले आम
यह कविता,
“ऐश्वर्या राय का कमरा” नामक कविता का दूसरा भाग है।
( कवि बृजमोहन स्वामी “बैरागी”)