लाकडाउन
सहमी ठहरी दुनिया की
तस्वीर देख रहा
हर शख्स
अपनी आंखों से ।
बाहर निकलता है जब
भीतर ही डर जाता है
कुदरत की
अदृश्य दहशत से ।
सोच रहा निस दिन
कब छूटेगा वो
लाकडाउन की
अनिश्चित कैदों से ।
मिट जाये अंधेरा पापों का
आशाओं के दीप जलाता
वो छज्जों
और चौबारों से ।।
राज विग 12.04.2020.