लहरों पर चलता जीवन
लहरों पर चलता जीवन
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कभी द्वंद्व रहा,कभी स्वच्छंद रहा ,
लहरों पर चलता जीवन है ।
बेफ़िक्र रहा जो हर ग़म से ,
मन उदात्त कराता वो बचपन है।
विचलित होता जीवन की थाती ,
विरह-मिलन की जब भी रुत आती।
जो अनुरक्ति में बांधे तरुणाई को ,
वो नव उमंग थिरकता यौवन है।
वृद्धापन का मतलब निर्बल काया ,
पर प्रबल अभ्यंतर मन की माया ।
पथरीले कंटक पथ पर बढ़ते सब ही ,
नित्य संघर्ष सिखाता वही जीवन है ।
तुम सोचो नित प्रातः उठकर ,
चर अचर और जड़ चेतन में जाकर।
लक्ष्य भटक गया,यदि नहीं मिला ,
तो मानो व्यर्थ ये सारा जीवन है।
कभी द्वंद्व रहा,कभी स्वच्छंद रहा ,
लहरों पर चलता जीवन है ।
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १२ /०३ /२०२३
चैत्र, कृष्ण पक्ष, पंचमी ,रविवार
विक्रम संवत २०८०
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