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23 Jan 2024 · 1 min read

लहजा

……….लहजा……..

ऐ जिंदगी! सीख रही हूँ जीने का लहजा
थोड़ी देर तू जरा और ठहर जा

हर शाम खुद को खोज रही हूँ
हर रिश्ते के राज समझ रही हूँ

ढलते सूरज से धीरज सीख रही हूँ
तारो से झिमिलाना सिख रही हूँ

ख्वाबों की मुट्ठी खोल रही हूँ धीरे धीरे
ऐ जिंदगी ! समझ रही हूँ तुझे धीरे धीरे

भीड़ से तन्हा लड़ने का लहजा सिख रही हूँ
ज़िम्मेदारी का उठाना बोझ सीख रही हूँ

ऐ जिंदगी! थोड़ी देर तू जरा और ठहर जा….
—————————–
नौशाबा जिलानी सुरिया

Language: Hindi
147 Views
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