लहज़ा रख कर नर्म परिंदे..!!
लहज़ा रख कर नर्म परिंदे,
करता रह निज कर्म परिंदे।
झूठों की महफ़िल में देखी,
सच को लगती शर्म परिंदे।
मोड़ जरा सा घुटनों को फिर,
ओढ़ रजाई गर्म परिंदे।
हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई,
सबका अपना धर्म परिंदे।
रिश्ते नाते सब बेमानी,
पढ़ गीता का मर्म परिंदे।
पंकज शर्मा “परिंदा”