लव जिहाद और शिकार
सिलसिला ना रुक रहा है, लव जिहाद शिकार का।
आज फिर से कत्ल हुआ है, एक और परिवार का।।
जाने क्यों ना खुल रही है, बंद आँखें आज भी।
जाने क्यो ना सोचते है, सो रहे है आज भी।।
यूंही कब तक खोते रहे, आने वाली पीढ़ियां।
यूंही कैसे भूल जाये, मुक्ति मार्ग की सीढियां।।
ये नहीं संयोग समझो, ये तो एक प्रयोग है।
देखने को सहनशक्ति, कर रहे प्रयोग है।।
हम अभी भी समझ रहे ना, क्या हमारा जा रहा।
है किसी घर की बहू जो, बनने से पहले मर रही।।
आज जैसे लव जिहाद की, बाढ़ सी आने लगी।
आज जैसे टुकड़े टुकड़ों में, बेटियां जाने लगी।।
सिलसिला ये बढ़ रहा है, लव जिहाद शिकार का।
आज फिर कत्ल हुआ है, एक और प्यार का।।
हम तो जैसे कुरु सभा के, भीष्म द्रोण बन गए।
हम तो जैसे कुरु सभा के, पाँच पांडव बन गए।।
हम गलत का विरोध करना, आज बिल्कुल भूलकर।
सो रहे हैं चैन से हम, आज सब कुछ भूलकर।।
आज अपनी बच्चियों की, अस्मिता है लूट रही।
आज अपनी मातृशक्ति, बूंद-बूंद है घट रही।।
हम मूकदर्शक बनकर बैठे, चीर-हरण है देखते।
ना कोई परवाह हमको, बेशर्म हम देखते।।
हैं नहीं विद्रोह कोई, शांति से हम बैठकर।
कर रहे इंतजार अपना, घर में अपने बैठकर।।
सिलसिला ये चल रहा है, लव जिहाद प्लान की।
आज फिर से बलि चढ़ी, एक और संतान की।।
__________________________________________
“ललकार भारद्वाज”