लवण असुर
मधु सुत लवण था एक भयंकर असुर,
ऋषि मुनियों को सताता डरते थे सुर,
एक दिन पहुँचे च्वयन ऋषि राम दरबार,
असुर के अत्याचारों से मच रहा हाहाकार,
जब तक उसके संग महादेव का वरदान,
हरा नही सकता उसको कोई वीर महान,
दे आशीष शत्रुहन को बोले प्रभु करो शत्रु संहार,
जागा हर्ष ऋषि मुनियों में हुई जय जय कार,
चला सुमित्रानंदन लेकर प्रभु का बान,
पहुँचा मधुपुर रखने रघुकुल की आन ,
महल के बाहर ही लवण को ललकारा,
नही था संग त्रिशूल मन उसका हारा,
एक तरफ असुर लीला का वंशज,
दूजी ओर से लड़ रहे राम अनुज,
शत्रु का संहार कर रहे थे राजकुमार शत्रुहन,
लवण असुर नही कर पा रहा था सहन,
चलाया वो बाण जिससे मरे थे मधु कैटभ,
मधुपुर हुई मुक्त असुर का चूर हुआ दम्भ,
यहाँ के राजा हुए अब श्रुतकीर्ति के स्वामी,
वो धरा कहलाई मथुरा जहाँ जन्मे कृष्ण स्वामी,
।।।जेपीएल।।।