ललाहित
कलियो से जो फूल खिले
उसे तोडने के लिए ललाहित हूँ मै
पन्ने उधेड दिए है जो किताबो से मैने
उसमे कुछ छिपाकर लिखने के लिए ललाहित हूँ मै
ख्वाबो की मिट्टी जो खोदी है मैने
उसमे कुछ यादे बोने के लिए ललाहित हुँ मै
उसमे पानी पडे या न पडे
कैसा है? यह देखने के लिए ललाहित हूँ मै
आसमां से ओझल हो गया जो तारा
मानो अलिंगन कर रहा हो मैरा
छिपा है किसी के पिछे दुबक कर
बादल है या दिनकर
यह जानने के लिए ललाहित हूँ मै
सूरज की हर पहली किरण को
अपनी छवि मे बटोरने के लिए ललाहित हूँ मै
आत्मा सोई हुई हो तो क्या?
किरणो का पहला कदम हो जिस तरफ
रुह के उस कोने को जगाने के लिए ललाहित हूँ मै
— शि.राव मणि