ललकार
सुन, ऐ साथी अख़बार के
कहना जाकर सरकार से
दया नहीं, अधिकार चाहिए
भीख नहीं रोज़गार चाहिए…
(१)
जाति-धर्म के झगड़ों में
भाषा-प्रांत के रगड़ों में
कब तक उलझे रहेंगे हम
झूठ-मुठ के लफड़ों में।
ज़रा ज़ोर से ललकार के
कहना जाकर सरकार से
दया नहीं, अधिकार चाहिए
भीख नहीं, रोजगार चाहिए…
(२)
ना मंदिर-ना मस्जिद
ना गिरजा-ना गुरूद्वारा
चाहिए हमको तीन सामान
रोटी, कपड़ा और मकान।
फटकार के-धिक्कार के
कहना जाकर सरकार से
दया नहीं, अधिकार चाहिए
भीख नहीं, रोज़गार चाहिए…
(३)
मचा ये कैसा हाहाकार
कहीं हत्या-कहीं बलात्कार
बढ़ा जा रहा-दिन पर दिन
देश में कितना-भ्रष्टाचार।
कब मुक्ति मिलेगी अत्याचार से
पूछना जाकर सरकार से
दया नहीं, अधिकार चाहिए
भीख नहीं, रोज़गार चाहिए…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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