लम्हे
तेरे साथ के वो हसीं लम्हे, दोबारा वापस ना आएंगे!
माना जिंदगी के चार दिन, हसीं लम्हे बाकी गम के।
आओ जी ले मुस्कुरा के, यह लम्हे दोबारा न वापस आएंगे।
अब कुछ बोली मिठास की ,फैला देंगे
जो छूट गए उसे अपना बना लेगे।
ये पल ऐसे ही बीत जाएंगे, इन्हीं बीते लम्हों को
सोच- सोच के हम मुस्कुराएंगे।
‘शुचि’ बेकरार है हर लम्हा तेरे साथ जीने को यारा!
अब हो जाओ तुम भी उतनी ही बेकरार मेरे यारा।
इस बेकरारी को अब कम नहीं करना, यूं ही साथ मेरे जीना ।
साथ मिलकर बनाएंगे हर क्षण हम नया लम्हा।
कभी मुस्कुराता लम्हा तो कभी ,दिल को लुभाता लम्हा।
डॉ माधवी मिश्रा “शुचि”