लफ्ज़ और किरदार
लफ़्ज़ों से तों नहीं किया तेरे किरदार का फैसला,,,
लफ़्ज़ भी तो तुमने हीं चुनें थें कभी अच्छे तों कभी दिल चीर देने वाले चुनें थें,,,
और हकीकत तों अपने से छुपाते नहीं
लहज़ा हीं तेरा बदलता गया पराया मुझे दिन पे दिन बनाता चला गया,,,
तेरा बर्ताव हीं तुझे मुझसे दूर करता चला गया
तू मुझे अपना कभी कहां हीं नहीं क्योंकि तेरे महफ़िल में चाहने वालों कि कमी नहीं,,,
तू बता तेरी हकीक़त क्या हैं जो मैं लफ़्ज़ों को समझूं तो एक पल मेरा अपना लगता हैं तों कभी मुझे छोड़कर सब का लगता हैं,,,
जों मैं बर्ताव देखूं तो मुझे तू बस इस्तेमाल करने वाला लगता हैं,,,
जिसे जैसे अपने मन के मुताबिक कोई सामान उसे कुछ समय तक हीं अच्छा लगता हैं,,,
वजूद तों मेरा मैं तुझमें हीं ढूंढ रहीं थीं पर अफ़सोस कि बात कि तेरे ज़िंदगी में मेरा वो वजूद हीं नहीं था जो एक हमसफ़र का होता हैं,,,
क्योंकि उस वजूद कि पहचान तू रखना हीं नहीं चाहता हैं
हा एक प्रेम का था तुम्हारे प्रति मेरे ज़िंदगी में तों तेरा वजूद वहीं रहा जों एक हमसफ़र का होता हैं उस पर हक़ किसी और का नहीं होता हैं,,,,
हां तुमने सहीं कहां वजूद मिट जायेगा वो मिट गया तुझे अपना बनाते बनाते,,,
मुझमें मैं न रहीं मैंने ख़ुद को खोया हैं ख़ुद को तुम्हारा बनाते बनाते,,,
वास्तव मैं ख़त्म उस दिन हुईं जिस दिन प्रेम को तुमने पैसों से तौल दिया,,
रहीं बात पैसों कि तों तुझे क्या पता मैंने पैसे भरें रिश्ते को ठुकराया हैं और तेरे पास कुछ भी न होंता तों भी मैं प्रेम को चुनती तुम्हारे कहें लफ़्ज़ों को चुनती,,,
अब वो तों तू हीं जान कि लफ़्ज़ तेरे हकीक़त के कहें हुएं थें कि लफ़्ज़ झूठे थें,,,!!!
खैर लफ़्ज़ तेरे पहले दिन के भी याद हैं जो दिल को सुकून बन गए,,,,
लफ़्ज़ तेरे आख़री भी याद हैं जो दिल को भरोसे को तोड़ गए,,,
अब तुम बताना कौन से लफ़्ज़ हकीक़त के थें,,,
क्योंकि मुझे दो चेहरे दो बातें समझ नहीं आतीं,,!!