“लताजी के चरणोंमे अर्पण”
सूरो का संगम कई भाषाओं में बहां,
जिसने.. स्वर दिया संगीत को…
बना दिया नायाब नगिना..!
थी…वो मधुर कंठवाहिनी..!!
जिसके गलेमें थी सूर की देवी,
जादू सबपे बिखेरे हवा संग उड़ गई..!..!
जाते जाते संगीत कि गूंज यादोमें छोड़ गई…!
महक दिलोमें अमरत्व रुपे भर गई..!
जिसकी आज हमको कमी हो गई..!..!
सूर की देवी कहां ‘खो’ गई….!
संगीत के सूर भी.. आज तड़प रहे..
वो… आवाज़ को..
जो आज खामोश हो गई….!!!!