लड़ाई
इक लड़ाई खुद से लड़ती हूँ,
अपनी अच्छाई से
खुद की बुराई को जीत सकूँ।
वो नफरत जो दुनिया ने
मेरे भीतर पैदा किये ,
प्यार में बदल सकूँ।
रुक नहीं पाते वो आँसू
जो बिना सवाल किए गिर जाते,
बहुत छाले पड़े हैं पैरों में,
मगर बिना रुके आगे बढ़ सकूँ।
दिल को बहुत चुभते हैं,
राह पर बिखरे शूल
मगर फिर भी दिल की महफ़िल
दुनिया मे सजा सकूँ।
रेत का घरौंदा कभी पक्का नहीं होता,
एक हल्की-सी ठेस से टूट ही जाता,
दबा रखा बहुत कुछ सीने में,हाँ,
टूटते दिल के घरौंदे को बचा सकूँ।
पूनम कुमारी (आगाज ए दिल)