लड़ाई
लड़ाइयाँ हर दौर में लड़ी गई। कभी अस्तित्व के लिए तो कभी वर्चस्व के लिए। इस लड़ाई का नतीजा ही था कि औरतें ब्याह के बाद पति का गोत्र या वंश नाम लिखने लगीं।
एक दौर ऐसा भी आया, जब नीता वर्मा और मुकेश गोस्वामी में विवाह पश्चात टकराव की नौबत आई। इसके कारण नीता वर्मा, नीता गोस्वामी की जगह नीता मुकेश गोस्वामी लिखने लगी।
एक बार फिर परिवर्तन की हवा चली। स्त्रियाँ पढ़-लिख कर अधिकार सम्पन्न हो गईं। अब उन्हें लगा कि अपना मूलनाम क्यों बदलें? आखिर यही तो इतने सालों से उनकी पहचान है। तब नारियाँ पति और ससुराल वालों को कहने लगी कि आप किस बात को लेकर बवाल कर रहे हैं, जरा सोचो तो सही?
यही वजह है कि विवाह पूर्व की नीता वर्मा, नीता गोस्वामी से नीता मुकेश गोस्वामी होते हुए नीता वर्मा गोस्वामी लिखने लगीं हैं। वो दिन दूर नहीं, जब वह घूम-फिर कर पुनः अपने मूल स्वरूप नीता वर्मा पर आ जाए।
अस्तित्व और वर्चस्व की लड़ाई अब भी जारी है। क्या यह लड़ाई कभी रुक पाएगी?
मेरी 45वीं कृति : दहलीज- लघुकथा संग्रह
(दलहा, भाग-7) से,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।