लड़खड़ाते है कदम
लड़खड़ाते हैं कदम तो फिर संभलना सीखिए
वक्त के मानिंद अब खुद को बदलना सीखिए
तुम सहारे ग़ैर के कब तक चलोगे इस तरह
चाहते मंजिल अगर तो खुद भी चलना सीखिए
अगर चाहते तम को मिटाना जिंदगी के बीच से
तो अमावस रात की शम्मा सा जलना सीखिए
शमा परवीन बहराइच उत्तर प्रदेश