लट जाते हैं पेड़ – गीत
लट जाते हैं पेड़
© बसंत कुमार शर्मा
राह किसी की कहाँ रोकते,
हट जाते हैं पेड़
इसकी, उसकी, सबकी खातिर,
कट जाते हैं पेड़
तपन धूप की खुद सह लेते
देते सबको शीतल छाया.
पत्ते, छाल, तना, जड़, सब कुछ,
लुटा रहे हैं पूरी काया.
पत्थर सह कर भी फल देने,
पट जाते हैं पेड़.
किसने रोपा किसने पाला,
कोई भी खाता कब रखते.
पात झरे, शाखाएँ टूटी,
सहें सभी कुछ हँसते हँसते.
उठें सहन में दीवारें, सँग,
सट जाते हैं पेड़.
होते फूल और फल कम जब,
सबके मन को कहाँ सुहाते.
साथ उम्र के बढती मुश्किल,
साँस नहीं खुल कर ले पाते.
कंकरीट में कैदी होकर,
लट जाते हैं पेड़