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2 Mar 2024 · 1 min read

#लघुकथा

#लघुकथा
■ पिछली वाली गली
【प्रणय प्रभात】
फरवरी का गुलाबी सा मौसम। शाम के चार बजे के आसपास का समय। कमल रोज़ की तरह घर के दरवाज़े पर डटा था। गिद्ध सी तीखी निगाहें कभी कलाई घड़ी पर जातीं। कभी सुनसान सी गली के उस मुहाने की ओर, जहाँ से कुछ दूरी पर रहने वाली रानी को दाख़िल होना था। जो स्कूल से लौटने ही वाली थी। इरादा वही, जो आज के दौर में होता है, इस बिगड़ैल उम्र में।
कमल इस बात से बिल्कुल बेपरवाह था कि घर के पिछवाड़े उसकी बहिन चेतना खड़ी है। पीछे वाली गली की ओर खुलने वाले दरवाज़े पर। लगभग ऐसी ही बैचेनी के साथ। पिछली गली में रहने वाले हमउम्र राज की प्रतीक्षा में। जो उसे वादे के मुताबिक कुछ देने वाला था आज। मनोदशा और मंशा वही अपने भाई जैसी। वही रोज़ सी बेताबी। वही बेशर्म और बिंदास सी अदा। वही दुर्भाग्यपूर्ण सोच, जो कमल के सिर पर सवार थी।
इसके विपरीत अपनी दोनों औलादों के क्रिया-कलापों से पूरी तरह अनभिज्ञ शिक्षक माँ-बाप अपनी-अपनी शालाओं में थे। अपने व अपने उन बच्चों के अच्छे कल के लिए, जो अपना आज बिगाड़े दे रहे थे। बिना इज़्ज़त और हश्र की परवाह किए।
😢😢😢😢😢😢😢😢😢

Language: Hindi
1 Like · 114 Views

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