#लघुकथा-
#लघुकथा-
■ सब से बड़े दानदाता।
【प्रणय प्रभात】
सुबह आंख खुलते ही मोबाइल खोला। मोबाइल खुलते ही पता चला कि अमर लाल मर गए। रात तक अच्छे भले थे। सुबह होने से पहले ही बुला लिया ऊपर वाले ने।
मामूली आदमी नहीं थे अमर लाल। शहर के धनाढ्य लोगों में होती थी उनकी गिनती। दिन-रात दीन-दुनिया से बेख़बर। बाप का दिवाला पिटने के बाद से उलझे थे डंडे-सट्टे में। चापलूसी और धूर्तता विरासत में मिली थी। फिर से अमीर बनते देर नहीं लगी। सब से बड़े दान-दाता निकले अमर लाल। मरने से पहले दो मॉल, तीन फेक्ट्री, दो आलीशान बंगलों सहित करोड़ों की ज़मीन-जायदाद दान कर गए चुपचाप। अपने इकलौते सपूत के नाम।
कुछ भी साथ ले जाने का परमिट नहीं था ना। मोहलत भी नहीं मिली। बस इसीलिए छोड़ गए सब कुछ। अब सब कुछ धरा पर धरा है। हमेशा घमंड के आसमान में उड़ने वाले अमर लाल का बेडोल सा शरीर भी।
■ प्रणय प्रभात ■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)