#लघुकथा
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■ फूट गया गुब्बारा
【प्रणय प्रभातY】
“गुरू! अपने मोहल्ले के पनवाड़ी की छोरी किसी लफड़े में है आजकल।”
लगभग फुदकते हुए आए गुर्गे रमुआ ने कलुआ उस्ताद के सामने ख़ुलासा किया। मुखमुद्रा ऐसी, मानो किसी न्यूज़ चैनल का एंकर या रिपोर्टर हो। इस ख़बर को हल्के अंदाज़ में लेते हुए कलुआ ने सवाल दागा-
“तुझे किसने बताया बे…?” रमुआ ने तुरन्त नया ख़ुलासा करते देर नहीं लगाई। तपाक से बोला-
“वो रात को 2 बजे तक छत पे भटकती है उस्ताद! बिल्कुल भटकती आत्मा की तरह। लफड़े में न होती तो चादर तान कर आराम से न सोती…?”
पनवाड़ी के घर आए दिन जाने वाले कलुआ उस्ताद ने रमुआ के जोश भरे गुब्बारे की हवा निकालने में पल भर की देरी नहीं लगाई। ये कहते हुए कि-
“पनवाड़ी की छोकरी खाना खाने के बाद दोपहर 12 बजे से शाम 7 बजे तक घोड़े बेच कर सो लेती है। उसे रात को नींद क्या खा कर आएगी बावले…?”
सनसनीखेज़ जानकारी की भद्द पिटने के बाद ख़ुद को ख़बरी मानने वाला रमुआ अब सदमे में है। उस बेचारे को क्या पता था कि नई नस्ल अपना ग्लो बनाए रखने के लिए क्या-क्या खट-कर्म कर रही है आजकल।।
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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