**लघुकथा**-
बहुत देर से वो गुनगुनाए जा रहा था । सामने वाली सीट पर दीन दयाल जी चुपचाप बैठे हुए थे । दीन दयाल जी काफी बुजुर्ग थे और वो नव युवक था ।
बाॅगी काफी खाली-खाली सा था ।
वो युवक कभी मोबाइल पर वीडियो देखता तो कभी गाना सुनता । तभी उसके मोबाइल पर किसी का फोन आया ।
युवक–“हाय स्वीट हार्ट ! मैं चार-पांच घंटे में वहां पहुंच रहा हूँ । मैंने अपनी दुकान खोल ली है । अब हमारा जीवन आराम से कट जाएगा ।”
दीन दयाल जी समझ गए कि ये कोई आशिक है । उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ से जो बातें हुई, उससे उसका चेहरा उतर गया और फिर –“मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या नहीं किया । तुमसे अपनी शादी तक रुकवायी नहीं गयी । तुम्हारे माफी मांग लेने से सब ठीक नहीं हो जाएगा । अब तुमसे बात भी मैं क्यों और क्या करूँ । मेरे साथ धोखेबाजी की है तुमने । देख लेना एक दिन मैं …..।”–फिर उसने क्रोध से मोबाइल को खिड़की से बाहर फेंक दिया । दुखी-दुखी सा वह कुछ देर बैठा रहा । फिर अचानक वहां से उठकर चला गया ।
एक घंटे बाद दीन दयाल जी को जहाँ उतरना था वो स्टेशन आने वाला था । तभी बाॅगी में बहुत शोर सुनाई दी । उन्होंने देखा कि उस युवक को कुछ लोग खींच कर सीट पर बैठा रहे थे ।
एक यात्री–“क्या हुआ, जो तुम ट्रेन से कूदना चाह रहे थे ?”
युवक कुछ नहीं बोल रहा था । दीन दयाल जी को सारा माजरा समझ में आ गया ।
वे युवक के नजदीक जाकर बैठ गए । थोड़ी देर बाद दीन दयाल जी ने उस युवक को समझाते हुए –“देखो बेटा ! मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ रहा हूँ । ह्रदय के अंतर से भावनाओं का सम्बल टूटता है । स्नेह के पथ के लिए गीतों का विक्रेता बनने की जरूरत नहीं है । जिंदगी कोई ताश की बाजी नहीं जो बार-बार आजमाया जाए । इसलिए संघर्ष से मत भागो । एक कामयाब इन्सान बनो । परिधि में बंध कर कामयाबी नहीं मिलती । कामयाबी के लिए उड़ान भरना पड़ता है । तुम्हारे भीतर जो क्रोध का ब्रह्मराक्षस बंद है सबसे पहले उसे मुक्त करो । फिर शांत होकर सोचो कि तुम क्या करने जा रहे थे ?”
वो युवक फफक कर रो पड़ा और–“सही कह रहे हैं आप । मैंने गलती की है और वो लड़की सही है, क्योंकि पेड़ से कट कर कोई साखा सुखी नहीं रह सकता ।”
–पूनम झा
कोटा राजस्थान
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