लगे मौत दिलरुबा है।
कुछ आरजूएं अभी दिल में जिन्दा है।
आसमान में उड़ने को दिल परिंदा है।।1।।
लो आज उसकी जुल्मत खतम हुई।
उसके झूठ का यूं टूटा हर पुलिन्दा है।।2।।
आशिकी में अब कहां कोई रोता है।
इश्क भी हुआ नफे घाटे का धन्धा है।।3।।
तुमने वादा किया था गरीबी हटाएंगे।
तुम्हारा निजाम भी औरों सा गन्दा है।।4।।
घर की इज्ज़त कहीं महफूज़ नहीं हैं।
इंसा खुद में हुआ बहुत ही दरिन्दा है।।5।।
लगे मौत दिलरुबा है इन दीवानों की।
शाहिदों ने यूं चूमा फांसी का फंदा है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ