लगता क्यूँ हर आदमी गद्दार है
करती हूँ मुहब्बत तुम्हीं से जान लो
डरती नहीं के जीत हो या हार है
ग़म नहीं जहाँ मे किसी का साथ हो
मिल जाए मुझको गर तेरा ही प्यार है
खुद से ही पूछीये के क्या बात है
हो गई तुमको मुहब्बत इक़रार है
आशिक़ तो दिल आपका ही हो गया
फिर न कहना कँवल से अपनी हार हैं
गिरहबंद-
लगता क्यूँ हर आदमी गद्दार है
आजकल हर दिल फ़क़त तकरार है