लक्ष्य पर अपनी नज़र को साधना
लक्ष्य पर अपनी नज़र को साधना
होगी पूरी भी तभी तो कामना
नाम हैं इंसानियत के दूसरे
त्याग, संयम,प्रेम और’ सद्भावना
प्यार ही है ज़िन्दगी मेरी यहाँ
प्यार की करती हूँ मैं आराधना
आस्था विश्वास होना चाहिये
शांत मन करती है प्रभु की वंदना
लब तो मेरे कुछ भी कह पाये नहीं
ये ग़ज़ल ही है मेरी अभिव्यंजना
नफरतों के शूल चुभते हैं बहुत
प्यार की बरसात की है कामना
अपने वश में करनी पड़ती इन्द्रियाँ
है नहीं आसान करनी साधना
पार भवसागर को कर ही लूँगी मैं
हे प्रभु बस हाथ मेरा थामना
गम मिटे, अंबार खुशियों का मिले
‘अर्चना’ की है यही शुभकामना
13-08-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद