लकीरें
खिंची हैं मेरे हाथों मे
कुछ टेढ़ी मेढ़ी सी लकीरें
कंयू मिटती नहीं है
लिखी गयी हैं जो तकदीरें ।
आंखों से नज़दीक दिखते हैं जो
कंयू रिश्ते बनते नही वो प्यारे
पता नही कसूर क्या थे हमारे
जो मिलते नहीं हसीन नज़ारे ।
सुखों के झोंके आयेंगे इक दिन
हम भी ढीठ बन खड़े हैं किनारे
धूप नही बरसात तो पहुंचेगी इक दिन
साये कितने भी हो घनेरे ।
हमने भी दिशायें बदली हैं इस बार
देखना है कब तक दूर हैं बहारें
फौलादी इरादे रखे हैं इस बार
देखना है किस्मत को रोकेंगी कब तक लकीरें ।
राज विग