रो रही है मॉं
लाख लाहनता देना तुम सूना हो उसका ज़हां।
खुशी के माहौल के अंदर जिसकी रो रही है माॅं।।
सारी उम्र खुद दुःख सहकर तुमको मालामाल किया,
जिंदगी की भागम भाग में तेरा मॉं ने बहुत ख्याल किया।
अपने पैरों पर खड़ा होकर अब तु क्यूं बनता फने खॉं।।
लाख-लाहनता देना तुम…………….
शायद याद नहीं तुमको जब तु स्कूल पढ़ने जाता था,
खुद मॉं भूखी रह जाती थी पर तू छिककर खाता था।
जिसकी त्याग तपस्या से ही लेकर मुट्ठी में फिरे जहां।।
लाख-लाहनता देना तुम…………….
7 साल का हुआ था पिता का साया सिर से उठ गया,
तेरे पालन खातिर कमर कसी भगवान भी रूठ गया।
तरक्की जरा सी मिल गई क्यूं सिर पर उठाया आसमां।।
लाख-लाहनता देना तुम…………….
समय ढलती फिरती छाया ना समझ नादान ना बन,
जीवन मुठ्ठी रेत-सा बिखरे क्यों दिखलाता पागलपन।
समय रहते सतपाल समझ काल ने जाल रखा फैला।।
लाख-लाहनता देना तुम…………….