रोशनी के चिराग
अभी रोशनी के चिराग जल रहें हैं।
अभी हाथ में ले मशाल चल रहें हैं।
कभी होश में आग जलानी पड़ेगी,
अभी रात सा बन हॉं वो ढ़ल रहें हैं।
गली में विरान है मकान अब कई,
जहां कुछ सुअर बैठकर पल रहें हैं।
यदि डर गये राज उनका चलेगा,
जुड़े उन से काफी कपट छल रहें हैं।
बुराई असर छोड़ दे अब इसी पल,
शहर में बने झूठ के कुछ दल रहें हैं।
अभी रोशनी के चिराग जल रहें हैं।
अभी हाथ में ले मशाल चल रहें हैं।।
रोहताश वर्मा ” मुसाफ़िर “