रोमांटिक रिबेल शायर
यह अश्क
ईनामे-इश्क है
सज़ा तो नहीं!
गमे-यार
गमे-जहां से
जुदा तो नहीं!
आख़िर हम
महबूब के लिए
मक़सद क्यों भूलें!
वह तो महज़
एक बुत है,
ख़ुदा तो नहीं!
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