रोती ‘हिंदी’-बिलखती ‘भाषा’
(हिन्दी दिवस के सुअवसर पर)
रोती ‘हिंदी’-बिलखती ‘भाषा’
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रोती ‘हिंदी’,
बिलखती ‘भाषा’;
टूट रही अब,
जन-मन की आशा;
कौन बचाएगा,
अपने ‘हिंदुस्तान’ को,
सोए हुए देश-भक्ति के,
अरमान को।
क्षमता है इसमें ही,
अपना असीम;
मगर दिखते सब,
गैरों में भी लीन,
सदा बजाते ,
विदेशी भाषाई बीन।
अपनी ‘हिंदी’ ही है,
सदा देश की आवाज,;
मगर कुछ लोभी जन,
कर रहे इसे बर्बाद।
भाषा की जननी,
‘संस्कृत’ ने भी जब,
इसे प्यार दिया,
तो हर देशी,
जनमानस ने क्यों नहीं,
इसे स्वीकार किया।
आख़िर कब तक ये,
‘राजभाषा’ का,
ऐसा बोझ ढोए;
जबकि राष्ट्रभाषा का,
असली हकदार ये,
बन जाती अबतक,
ये विश्व की भाषा, मगर;
गंदी राजनीति का,
ही शिकार ये।
आज हर भाषा की,
दिल से यही पुकार,
‘हिंदी’ को जल्द मिले,
‘राष्ट्रभाषा’ का सत्कार।
अब भी जागो,
हे जनमानस देशी;
पूरा अपना लो,
अब अपने ‘हिंदी’ को,
हरकदम भारतमाता के,
माथे पर लगा दो अपने,
इस हिंदी के बिंदी को। ……
‘हिंदी’ यों जबतक,
अपने देश में सिसकेगी,
देशभक्ति सदा,
हर जनमानस से खिसकेगी,
‘हिंदी’ की टीस और आशा,
जाने हर भाषा;
रोती ‘हिंदी’ और,
बिलखती सब ‘भाषा’।
रोती ‘हिंदी’ और…..
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“जय हिंद” ??”जय हिंदी”
स्वरचित सह मौलिक
…. ✍️ पंकज “कर्ण”
……….कटिहार ?