“रोटी” अपनी अपनी
रोटी
मिटाती है भूख तन की,
बढ़ातीे है भूख मन की।
रोटी के ही आगे,
फीकी ही है, खनक धन की।।
रोटी का भी अपना ,
एक अलग स्वाद होता है।
जो जैसा खाता है अन्न,
उसका वैसा मन होता है।।
गरीब की रोटी उसकी दवा होती है,
फकीर की रोटी उसकी दुआ होती है।
धनवान की रोटी उसका आहार होती है।
किसान की रोटी उसकी मेहनत होती है।
जवान की रोटी उसकी ताकत होती।
बचपन मे रोटी खेल होती है।
उत्तर कुतर के खाते हैं,
एक प्यार भरा फलसफा होती है।
विद्यार्थी की रोटी उनका जुनून होती है ।
दुल्हन की विदाई की रोटी शगुन होती है।
कहे पा”रस” जीने के लिए खाओ, ना की खाने के लिए जियो, यह जीवन की जरूरत होती है।