रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती है रोटियाँ, खुद दोड़ती है सबको भगाती है रोटियाँ।। दिल से मोहबतो को मिटाती है रोटियाँ।। ज़िंदगी का सबक सबको पड़ाती है रोटियाँ।। पूछो ना क्या क्या गुल ये खिलाती है रोटियाँ, जिंदा ही आदमी को चबाती है रोटियाँ।। हर आरज़ू का कत्ल कराती हैं रोटियाँ, जो कर न तक वो भी कराती है रोटियाँ।। छोटी, बड़ी, चकोर हर तरह की है रोटियाँ, पर हाथ किसी किसी को ही आती है रोटियाँ।। कब, किसने कहा भूख मिटाती है रोटियाँ? रहा सहा आदमी भी खाती है ये रोटियाँ।। दुनिया को उंगलियों पर नचाती है रोटियाँ, जाने कहा आँखे लड़ाती है रोटियाँ।। हर आईने मे अब तो नज़र आती है रोटियाँ, भगवान् भी हैरान है जो कराती हैं रोटियाँ, क्यू इनको बनाया जो कहलाती हैं रोटियाँ।। परेशा हु आज में बनाकर ये रोटियाँ, रुतबा ये मेरा आज घटाती है रोटियाँ, बन्दो पर कहर अब तो बरपाती है रोटियाँ, यही बात है जिस पर इतराती है रोटियाँ।।