— रोज रोज आँखों तले —
रोज रोज आँखों तले
बस इक ही सपना पले
सुबह का निकला मानव घर से
सुख शान्ति से घर पर आ मिले !!
न दुःख मिले न जयादा सुख मिले
जिंदगी यूं ही चलती रहे
आना जाना ठीक से हो उस का
शाम को बच्चों के संग घुले मिले !!
ठोकर न लगे किसी अनजान की
आराम से रास्ता कटता रहे
न हो किसी से मुंह भाषा
जिस से भी मिले बस प्रेम से मिले !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ