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13 Jun 2023 · 1 min read

रोज खिड़की के पास

रोज खिड़की के पास
आँखें मुंद कर
महसूस किया करती हुँ तुम्हें
और
भोर की सुनहली किरणों से
वादा किया करती हूँँ
मैं नहीं रोऊँँगी
सावन की बौछारें हो
या शीत की लहरें
मैं नहीं रोऊँगी
भीड़ हो या तन्हाई
घर हो या रास्ता
मैं नहीं रोऊँगी
पर
साँझ की लालिमा
होते – होते
वादा भरभरा कर
आँखों से टुटने लगता है
रोज खिड़की के पास ।

Language: Hindi
80 Views
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