रोजी रोटी हँसी
रोजी रोटी हँसी हमसे घर छीनकर
आँख तो दे गई पर नजर छीनकर
सुबह ठहरी नहीं रात भी चल पड़ी
शाम की गोद से दोपहर छीनकर
अब मैं समझा कि कैसे गईं मंजिलें
रास्तों का सुहाना सफर छीनकर
पेट खाली उसी का रहा हर घड़ी
वो जो खाता रहा उम्र भर छीनकर
ज़िंदगी से जिसे थी मोहब्बत बहुत
जाने क्यों पी गया वो जहर छीनकर
बैठकर आँधियों में चले आए हम
कैद से सागरों की लहर छीनकर