*रेल हादसा*
डॉअरुण कुमार शास्त्री
* रेल हादसा *
ये मौत भी अजीबो हसीन चीज़ है,
जब इसको दखल देना होगा,
तो ये नहीं देखती कोई भी जगह कोई भी समा।
रेल का इतिहास गवाह है इसकी हरकतों का।
न उम्र देखती न कोई मज़हब गज़ब का मिजाज़
इसको तो है सिर्फ और सिर्फ निभाना और पूरा करना
श्री यमराज का समीकरण और चित्रगुप्त का हिसाब
किसी को ले गई , किसी को छू कर निकली ।
ये मौत भी अजीब शे है बड़ी वे वफ़ा निकली ।
कहीं गम का कहीं दर्द का माहौल बन गया ।
किसी को बख्श दिया , किसी को लेकर निकली ।
है बिना हिसाब का हिसाब इस नामुराद का ।
कोई भी मुक्तसर वक्त है क्या इस बे नकाब का ।
तड़फता कोई तो कोई है उम्मीद से अस्पताल में ।
किसी की टूट गई हड्डी पसली , किसी की साबुत निकली ।
फँसें हुये थे सीटों के बीच सैंकड़ों बशर दर्द के मारे ।
के मिली इमदाद वक्त पर किसी को और किसी की जाँ निकली ।
सफ़र महज कुछ घंटों का अंतहीन वाकया बन जायेगा ।
ऐसे हालात से गुजरेंगे चीखो पुकार का आलम पेश आयेगा ।
मदद इलाही चंद सिक्कों की ए मौला तू इस तरह दिलायेगा ।
किसी को ले गई , किसी को छू कर निकली ।
ये मौत भी अजीब शे है बड़ी वे वफ़ा निकली ।
जो घायल हुए उनके मुंह पर अरदास है माफ करना मालिक ।
जो जीवित नहीं रहे उनके संबंधियों के हांथ महज बची राख है।
इसका तो खेल हुआ रोज का कभी दो कभी चार और कभी कभी तो एक बार में ही हजार लेकर निकली ।
किसी को ले गई , किसी को छू कर निकली ।
ये मौत भी अजीब शे है बड़ी वे वफ़ा निकली ।