** रेत से मनसूबे **
रेत से मनसूबे तेरे
कब तक ठहर पाएंगे
आश्वासन रूपी छींटे
कब तक रोक पाएंगे
बिखरे सपनों को तेरे
हिफाजत से रख पाएंगे
धूप अरमानो को सुखा देगी
ऊष्मा अपनी कब तक
दिल के घरोंदे में बचा पाओगें
ये असफलता का सूरज
नमी सोख लेगा सारी और
सपने तेरे बालू रेत की माफिक
जर्रा जर्रा में बिखर जायेंगे ।।
?मधुप बैरागी