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23 Mar 2020 · 1 min read

रेत के महल

रेत के जो महल बनाई थी हमने, न पता था उसको ढहना है!
जानता था न मैं कि एक दिन, भीच लब को ये गम सहना है!!

आरज़ू क्या थी, क्या थी चाहत, क्या क्या ख्वाहिशें उससे करना है!
तकते रहते थे जिसको एकटक, अब उम्र भर उसको तकते रहना है!!

ख्वाब न देखे तो क्या मर ले, हमको तो कड़वे हक़ीक़त से डरना है!
चौंक कर आंखे खुल न जाये मेरी, अब ताउम्र मुझे सपनो में रहना है!!

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २२/०३/२०२०)

1 Like · 455 Views
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