रेत की दीवार सी जिन्दगी
*****रेत की दीवार सी जिन्दगी*****
******************************
रेत की दीवार सी होती है यह जिन्दगी
पलभर में ढ़ेर में बदल जाती है जिन्दगी
तेज चलती हवाओं से सदा डरती रहती
बयार के झौंकों से फिसलती है जिन्दगी
रेगिस्तान में तरसती रहती बूँद बूँद को
दरिया में लहरों संग डूबती है जिन्दगी
दिशा बदलाव से बदलती रहती है दशा
ज्वारभाटा सी रंग बदलती है जिन्दगी
पठारों के पठार ढ़ह जाते हैं तूफानों से
उड़ती रेत सी स्थान बदलती है जिन्दगी
रास्ते बदल जाया करते सदा मंजिलों के
टस से मस शैली नहीं होती है जिन्दगी
मिट्टी माटी में मिल जाया करती अक्सर
मनसीरत क्यों गुमान करती है जिन्दगी
******************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खैड़ी राओ वाली (कैथल)