रेजांगला युद्ध
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भारत भूमि सदा वीर यदुवंशियों के संरक्षण में गौरवान्वित रही है.
यहाँ समय-समय पर एक-से-एक वीर पैदा होते रहे हैं जिन्होंने अपने साहस, बलिदान और वीरता के बल पर राष्ट्र के मस्तक को उंचा किया है.
धन्य हैं वे माँ जो ऐसे वीर सपूतों को जन्म देती हैं.
ऐसे ही कुछ अहीर वीर-जवानों ने सन् 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान रेजांग ला क्षेत्र में अपने प्राणों की आहुति देकर जहाँ राष्ट्र के मान-सम्मान और गौरव को बढाया वहीं यादव का भी सिर उंचा किया। उन्होंने अहीर शब्द की सार्थकता सिद्ध कर दी।
‘अहीर’ अभीर शब्द का अपभ्रंश है जिसका अर्थ होता है “न डरने वाला’ अर्थात निडर।
देश की रक्षा के लिए उन्होंने निडर होकर अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुडा दिए. कर्तव्य पालन का ऐसा उदाहारण विश्व इतिहास में कहीं और नहीं मिलता जिसमें जवान जीवन-मरण से बेख़ौफ़ अंतिम गोली और अंतिम सांस तक दुश्मन से लोहा लेते रहे.
मातृभूमि की रक्षा का इतना दृढ संकल्प कि युद्ध-विराम हो जाने के तीन महीने बाद जब पहाड़ पर बर्फ पिघली और उनके शवों को ढूंढकर रणभूमि से सम्मान सहित बाहर लाया गया तो उस समय भी कुछ जवानों के हाथ से हथियार छूटे नहीं थे अपितु पहले की भांति ही तने हुए थे. मानो अब भी दुश्मन को ललकार रहे हो.
सन 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान 13-कुमाऊँ (All Ahir)को चुशूल क्षेत्र में तैनात किया गया था.
चुशूल चीनी सीमा से 15 किलोमीटर दूर हिमालय के पहाडो में 16000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा सा गाँव है. ऊंचे ग्लेशियरों से घिरा हुआ सुनसान पहाड़ी इलाका है वहां हर मौसम में लैंडिंग के लिए उपयुक्त एक हवाई पट्टी है.
चुशूल घाटी के दक्षिण-पूर्व दिशा में कुछ मील की दूरी पर रेजांग ला नामक एक पहाड़ी दर्रा (pass) है, जो सुरक्षा की दृष्टि से यह बहुत अहम है.
13-कुमायूं रेजिमेंट की अहीर चार्ली कंपनी को रेजांग ला में तैनात किया गया था..मेजर शैतान सिंह इस कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे. उनके संचालन में सैनिको ने रेजांग ला में महत्वपूर्ण तरीके से पोजीसन ले रखी थी.
सिपाहियों ने वहा अच्छे मोर्चे बना लिए थे किन्तु उनके पास दुश्मन को रोकने के लिए न तो कोई mines बिछाने का प्रबन्ध था और न हि कमांड पोस्ट की सुरक्षा हेतु पर्याप्त साधन.
17 -18 नवम्बर की रात्रि में चीन ने रेजांग ला के आस पास अपने सैनिक तैनात कर दिए थे.
उस दिन वहां का तापमान शून्य से 15 डिग्री सेल्सियस नीचे था. असमान्य एवं खून जमा देने वाली कड़ाके की ठण्ड थी.
रात्रि 10 बजे तेज बर्फीली तूफान शुरू हुआ जो 2 घंटे तक चलता रहा जिसने आग मे घी का काम किया और सम्पूर्ण घाटी को जानलेवा ठण्ड से जकड दिया . भारतीय सैनिक मैदानी क्षेत्र से लाकर वहां तैनात किये गए थे. वे इस तरह की बर्फीली ठण्ड में रहने के अभ्यस्त नहीं थे। 18 नवम्बर को रविवार का दिन था और दिवली का त्योहार।
सारा देश जहा दीपावली का जश्न मना रहा था वही ये वीर अहीर सैनिक विषम परिस्थियों में प्राणों की बाजी लगाकर मातृभूमि की रक्षा के लिए खून की होली खेल रहे थे.
सुबह 5 बजे पौ फटने से पहले चीनी सैनिको ने रेजांग ला की चौकी पर भीषण हमला कर दिया. भारतीय जवानो ने जबरदस्त जवाबी कार्रवाई करते हुए उस हमले को विफल कर दिया. यह जबरदस्त लड़ाई कई घंटों तक चली.
इसमें दुश्मन को बहुत नुक्सान उठाना पड़ा . उसके अनेको सैनिक मारे गये और बहुत से घायल हुए. वहां की नालियाँ दुश्मन की लाशों से भर गईं। इस हमले के विफल हो जाने पर दुश्मन- फ़ौज़ ने एक और जबरदस्त हमला किया। लेकिन इस बार भी उनको मुह की खानी पडी।
भारतीय रण-बांकुरों ने उस हमले को भी विफ़ल कर दिया। तब चीनी सैनिको ने चौकी के पीछे की ओर से भारी मशीन गन, मोर्टार, ग्रेनेड आदि के साथ से हमला बोल दिया। वहां उस समय चीनी सैनिकों की लाशें बिछी पड़ी थीं । कई जगह तो हमलावरो को अपने ही सैनिकों की लाश के ऊपर से गुजरना पडा।
दुश्मन की फौज ने भारतीय चौकी को चारों ओर से घेर लिया और तोपों से भारी गोले बरसाने शुरू कर दिए। भारतीय सैनिक चीनियों की अपेक्षा जहाँ संख्या में बहुत कम थे वहीं उनके हथियार और गोला बारूद भी अपेक्षाकृत कम उन्नत के थे फ़िर भी वे बड़ी वीरता के साथ डट कर लडे। गोला बारूद समाप्त हो जाने पर भी भारतीय जांबाज हार नहीं माने।
वे मोर्चे से बाहर निकल आये और निहत्थे ही ”जय श्रीराधाकृष्ण की जय” का युद्धघोष करते हुए चीनी सैनिकों पर टूट पड़े। दुश्मन की फ़ौज़ का जो भी सैनिक मिला उसे पकड़ लिया और चट्टान पर पटक पटक कर मार डाला। कुछ अपनी राइफल में लगी चाकू को ही निकाल कर उसी से दुश्मनों को मारने लगे…
चीनियों ने ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं की थी..उनके रोंगटे खड़े हो गये अहीरों के पराक्रम को देख कर..
इस प्रकार विषम परिस्थितियों मे प्राकृतिक बाधाओं के खिलाफ रेजांग-ला की इस लडाई मे भारतीय वीर अहीर जवान आखिरी गोली, खून की आखिरी बूँद और आखिरी सांस तक लडते रहे। शूर-वीरो ने अपने प्राणो की आहुति दे दी लेकिन चौकी पर दुश्मन का कब्जा नही होने दिया।
कंपनी के 123 में से 114 अहीर जवान मारे गये थे .इसमें से अधिकांश हरियाणा के अहिरवाल क्षेत्र के रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिले से थे। कुछ -एक दिल्ली और राजस्थान से भी थे। इस लड़ाई में चीन की फ़ौज़् का बहुत नुक्सान हुआ था.। एक अनुमान के अनुसार इसमें लगभग 3000 चीनी सैनिक मारे गए थे।
13 -कुमायूं रेजिमेंट की इस कंपनी के 114 अहीर वीरों की याद में चुशूल से 12 किलोमीटर की दूरी पर एक स्मारक बना है जिसमे सभी वीर सैनिकों के नाम अंकित हैं।
रेजांग ला में ही ‘अहीर धाम’ की स्थापना की गयी है…
रेजांग ला शौर्य समिति द्वारा रेवाड़ी शहर के धरुहेरा चौक के निकट एक शहीद स्मारक स्थापित किया गया है. यह समिति प्रति वर्ष इन शहीदों कि याद में 18 नवम्बर को रेजांग ला दिवस मनाती है.
#किसानपुत्री_शोभा_यादव