रेगिस्तान के महल तक
मैं खुश हूं
फिर भी कुछ चाह रही हूं
क्या
मुझे भी शायद नहीं पता
जिन्दगी पास है
फिर भी
इसे पाना चाह रही हूं
पानियों की धाराओं के बीच
बैठी हूं
फिर भी प्यासी हूं
समुन्दर के मध्य स्थित
एकांत में
किसी टापू के खंडहर
तक नहीं बल्कि
रेगिस्तान की
रेतीली मिट्टी से बने
किसी महल तक
ऊंट की पीठ पर बैठ
हिंडोले में झूलती, नाचती, गाती
हवाओं की सवारी खाती
पतंग की तरह आकाश छूती
पहुंचना चाह रही हूं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001