रूह
रूह
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रूह से जब अलग हो जायेगा
कैसे फिर इंसान रह जायेगा
छोड़ कर यह जहाँ चला जायेगा
रोता बिलखता छोड़ जायेगा
चलती -फिरती तेरी यह काया
मुट्ठी भर राख में सिमट जायेगी
बातें तेरी याद जमीन पर आयेगी
परियों की कहानी सुनाई जायेगी
अकड़ सारी तेरी धूमिल हो कर
लाठी सी तन कर रह जायेगी
बन तारा आसमां में चढ़ ऊपर को
सन्तति को राह हमेशा दिखायेगा
खूब कड़क बोल गूँजा करते थे
खूब दुन्दुभि तेरी बजा करती थी
मान – सम्मान भी पाया तूने बहुत
अब मूक बन चल पड़ा यहाँ से
रूह ने देह में घुस रूह को लुभाया
संग -संग प्रेम सरगम गुनगुनाया
टूटते दिल को बसन्त से महकाया
अनजान को भी अपना बनाया
जीवन संग्राम में रूह फना हो जाए
मेरा मिल मुझसे बिछड़ जायेगा
आघात गहरा दे कर चला जायेगा
बरबस फिर बहुत याद आयेगा
डॉ मधु त्रिवेदी