रूह से जुड़े रिश्ते
जब मुझको पाने की कोई आस ही नहीं थी..
तो मुझे खोने का डर होता भी तुम्हे कैसे..??
जब एक दूजे का मिलना लिखा ही नहीं था..
फिर कुछ पलो की सौगात भी मिले कैसे..??
बात ये नहीं कि सच्चाई कुबूल की नहीं थी..
दर्द समेटे बिना भला ज़िन्दगी बसर हो कैसे..??
बात उस दिन हां तेरी अनसुनी कर दी थी..
प्यार था वो भी मेरा तुम्हे बेवकूफी लगा कैसे..??
मेरे लिए डरने की तुम्हे ज़रूरत ही नहीं थी..
साथ गर देते तो मुझे कोई डर होता भी कैसे.??
तुमको लगता है कि जुदा होना ही एक रास्ता..
देखूं तो रूह के रिश्ते आख़िर जुदा होते हैं कैसे..??
#_मदीहा_अय्याज़”फरीदा”✍?