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5 Nov 2023 · 2 min read

रूह की अभिलाषा🙏

रूह की अभिलाषा🙏
**************
व़क्त गुज़ार रहे हैं दो रूह रूहानी
वंश देख परलोक से सुखी दुःखी

दम्भभरी बात पकड़ नादानी
धर्म कर्म नीति ना पहचानी

बेजान छोड़ दिया बचपन को
जिस मिट्टी में जन्म लिया खेल

खा पढ़ कुर्सी कठिनाई से पाया
अतीत विस्मृत हो बना घमण्डी

चका चौंध दुनियां की दौड़ में
भूल गया पूर्वज त्याग तपस्या

क्या सोच कष्ट उठाया इन्होंने
मेरी धरती मेरी खेतों की मांटी

धिक्कार दे बहुत कुछ कहती है
देख रहे खेतों को गरभू बैठा बाबा

खीर पूड़ी खा गोछी घर कराता
माँ पिता परिवार एक साथ बैठ

दाल भात सब्जी पकौड़ी खाता था
कनक पनीरी धानो की मंजरी

मक्के अरहर मसूर दलहन की फूलें
झोंके पवन हर दिशाएं पग हिलोरे

कोस रहें ये किन औलादों हाथ
छोड़ गए हमे पद घमण्डी वैभव

संपदा अंधी जो कर्म किया ना
भाई अंश को टुकड़े में बांटा

टुकड़े बट सही था अंश किसी के
आकर शोभा श्रृंगार उपज दानों

जीवन सबल बनाने कण मांटी
दुःख दर्द सहारा सकून गर्व पाता

पर हाथों की कठ पुतली बना
नाच नचा अपार कष्टों से भरा

कलेजा कट कट गिर रहा मांटी
वंश हाथों की सपना देख रहा

स्पर्श करो निज जन्म मांटी को
अनुभव होगा पुरखों की श्रम

पसीना रक्त हृदय का धड़कन
महशूस करो दर्द बेज़ुवा रुह का

माँ माटी ने कितनी बार बुलाया
सविनय आमंत्रण से कह रही थी

बांट खण्डित कर सौंप दे मुझे
आया बैठा समझ नहीं पाया

ये इसने वो उसने बात कही है
औरत सी उलझन बेतुक मुद्दा

बड़ा छोटा यह मैं तू हो क्या ?
धमकी अहंकारी चमक दिखा

इसने उसने मैं तू की भंवर चक्रवात
गुमनाम छिपा ऊषा लाली आंचल

छोड़ रहे तरकश के तीर ज़हरीले
छलनी हो रहे बचपन की रूहानी

वाणी तानों से क्या मिला है जग में
सिर्फ मनमुटाव नफरत इंझट पाता

चुभन पीड़ा पश्चताप भरे जगत में
ताना-बाना छोड़ कबीरा चल बसे

बड़ी यतन से झीनी झीनी बीनी
चदरिया ना इसे मैली करी जैसी
मिली थी तैसी छोड़ दी चदरिया

सपने आ रुह समझाती वंश को
जिम्मेदारी से कितना दूर भागोगे

मेरी स्वर्ग समाधि पर सूखी फूल
कब तक बरसाओगे क्या तृप्त ?
हो जाऊंगा सुगंधहीन पुष्पों से

चंचल दम्भी मन स्थिर करों यहां
जग रीत प्रीत समझ शीतल हो

दुनियांदारी जबावदेही मत भूलो
ऋण जन्म का चुका छोड़ सभी

एक दिन अनजान दुनियां मेंआना
होगा समझ इसे सोच विचार करो

संपदा वैभव नश्वर आनी जानी
समझ इसे मत करों अनजानी

धर्म कर्म सत्य न्याय अमर ज्ञानी
प्रेरणामयी जीवन जीव जगत में

चार कंधो का लिए सहारा
जग छोड़ आना तो तय है

तन मत कर मैली जरा भी
साफ छोड़ चल रुहनगरिया

************************

तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण

Language: Hindi
233 Views
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