रूप श्रंगार
रूप श्रंगार मे उसके सब अलंकृत,
कजरारे नैन जैसे श्यामलता घोर।
केशविन्यास करे जब जब,
लगे की कही बरसे घटा घनघोर।
अक्षर खिले उत्पल रूपी,
मन चंचल जैसे कोई चितचोर।
निज प्यार की धुनी रमाए,
निज प्यार का संदेश।
मोहिनी के प्रबल हृदय मे,
प्रिय से सपने अनेक।
मोहक अनुपम रूप से अपने,
रति से भी करे हार जीत।
है सौभाग्यशाली वो जो बना,
प्रेम विह्वल प्रनामिका का मीत।
करे मन ही मन मीत से बाते,
हंसे तो लगे खिले फूल अनेक।
निज प्यार की धुनी रमाए,
निज प्यार का संदेश।
मोहिनी के प्रबल हृदय मे,
प्रिय से सपने अनेक।