रूप रस गंध में मैं नहाता रहूं।
तुम मेरी जान सजती संवरती रहो
रूप रस गंध में मैं नहाता रहूं।
चांद के नूर की तुमको दौलत मिले
तेरी खुशियों में आनंद पाता रहूं।
खिलखिलाती खिली सी चहंकती रहो
गीत खुशियों के मैं गुनगुनाता रहूं।
गम की दीवार ढह जायेगी खुदबखुद
पास बैठो मैं नजरें मिलाता रहूं ।
कुछ कहो, पूछ लो कुछ नजर ही नजर
मैं नजर ही नजर में बताता रहूं।
बनके हमराह तुम साथ चलती रहो
मैं जहाँ के नजारे दिखाता रहूं ।
आओ बंध जाओ तुम प्रीत की डोर में
एक चाहत कशिश मैं जगाता रहूं।
अनुराग दीक्षित