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23 Oct 2020 · 1 min read

रूतबा

रत्ती भर का भी सुख
वो मुझे दे न सका
भटकता जिसकी तलाश मे तमाम
मै उम्र रहा ।

रूतबा सभ्य समाज मे
दूसरों से ऊंचा समझ
अंहकार की मद मे सदा
मै डूबा रहा ।

अपना पराया हर कोई
दूर मुझसे होता गया
कागज के टुकडों को रोज
मै गिनता रहा ।

चार दीवारी मे बन्द
कीमती साजो सामान के साथ
जिन्दगी का सफर अकेला तय
मै करता रहा ।।

राज विग 23.10.2020

Language: Hindi
4 Likes · 302 Views
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