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4 Dec 2016 · 1 min read

रूठ कर उसने खिझाया देर तक

रूठ कर उसने खिझाया देर तक
माना ,जब हमने मनाया देर तक

पास आकर लग गले बस रो दिया
रह न पाया पर पराया देर तक

वो छुपाने गम,सभी के सामने
बेवजह ही मुस्कुराया देर तक

अलविदा सांसों को अपनी कह गया
वो जुदाई सह न पाया देर तक

ढा रहे आतंकवादी जो कहर
देख ही दिल थरथराया देर तक

दूर तम तो हो न पाया ‘अर्चना’
दीप लेकिन टिमटिमाया देर तक

डॉ अर्चना गुप्ता

1 Comment · 479 Views
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