रुह को रुह में उतरने दो
आज लबों को बोलने की इजाज़त नहीं
आंखो को ये काम करने दो
करीब आ जाओ इस तरह
रुह को रुह में उतरने दो.
आज की रात कयामत से कम नहीं
बस ये एहसास आज हो जाने दो
तू मेरे मैं तेरे जजबात सुन लूँ
इक दूजे की बाहों में पिघलने दो.
खत्म होती आँसूओं की बरसात
बस यूँ ही इन्हें बह जाने दो
फिर मिले ना मिले ये पल कभी
संवरकर यूँ ही बिखर जाने दो.