रुत चुनाव की आई 🙏
रुत चुनावी आई
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नेताजी रुतबा पंचबरसीय
जनता के आंखों की मिरची
माँ भारती की ये राजदुलारे
सिंहासन की हैं शोभा पाते
ले सपथ बैठते आसान प्यारे
सत्ता भत्ता महत्ता गुरुर भरपूर
सुहानी रुत चुनाव की आई
रुतबा की रूत भीड़ दिखाती
लौटी नेताजी की जुवानी है
हाथ जोड़ते गले मिलाते हैं
कोई नहीं पहचान भीड में हैं
मन ही मन स्वयं कोसता
बीते कल को याद कर कर के
जाग उठे हैं नेताजी अनजानी
झूठे सच्चे वादों को भूलकर
मैंजिक जन लुहावन मुद्दे लिए
चुनावी भूकम्प तीव्रता में
हिलते डुलते नजर आते हैं
मानस सपना बना खंडहर है
आश विकास चकनाचूर हुआ
क्षेत्र बदल नेता जी बदलते हैं
वागी जंग बद जुवानी छिड़ता
मिड़िया लाइव तुल पकड़ जन
मानस को मानसिकता दिखाते
झुके धिक्कार हुंकार मंच सजा
कसमें वादे पूरा करने की वचन
गला फाड़ कह जाते हैं ??
रैली रैला की शैली भी छबीला
नाच गान कलाकारों का मेला
जनता जुटते कर ठेलम ठेला
मनमोहक मोहनी घोषणा पत्र
समझा छदम् जय घोष करते हैं
जागरूक जनता समझ विचार
कर मान ठान लेता रैली में ही
सीख सिखानें की रूत आई है
अंहकारभरी वद ज़ुवानों को
जन भाव विमुख कदाचारों को
धर्म कर्म भुलक्कड पाखंडों को
महामण्डलेश्वर चक्क्षु खोलने
नद नारायण की रूत समझाते
सत्ता मद्होशी कब समझता है
सत्ते भत्ते रुतवे मज़े से नेताजी
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे दहलीज
माथाटेक जन जन को दिखाते
मत वटोरने की ठीक रुत आई
होशियारी में बटोर नहीं पाते हैं
क्योंकि जनता उठ जागपड़ी है
कभी कनक खेतो की क्यारी
किसान गरीब गली नाली संग
झाडू पोंछा लिए नेताजी हाथ
नगर मुहल्ले जुग्गी झोपड़ी में
तलते समोसे छलनी से जन
दिल छल छलनी कर डाले हैं
रंगमहल से रज महल आए हैं
बेकूफ़ी की चाल समझाते हैं
अपनी हाल पर छोड़े जनता
सत्ते का भोग लगाते नेताजी
नर नारयण रोता पांच बरस
जन मानस चाल समझता है
विकास परिवर्त्तन बेरोजगारी
मुद्दा समझ विचार बटन दबाते
तीन रंगों बना स्वभिमान तिरंगा
झुका नहीं झुकने नहीं देगा ये
धर्म कर्म विश्वास से गद्दी देता
पाँच बरस में बस एक दिनवाँ
अंगूठे की शक्ति दिखाता जन
रोते बिलखते नेताजी भूतपूर्व
हो काश ? ये करता वो करता
स्वयं ही स्वयं को समझाता है
जैसी करनी वैसी भरणी . . ?
नये पंचवर्षीय योजना बना नये
चुनावी जीत से नयीरूतलाता है
भावना सेवा जनता की जो समझे
मत की महत्ता मर्यादा को समझे
वही जन गण मन के प्यारे होते
वही स्वर्ण सिंहासन शोभा पाते ॥
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तारकेशवर प्रसाद तरुण