रुख बदल गया
अधखिली सी धूप को स्याह अंधेरा बदल गया
सूरज निकलते निकलते अपना रुख बदल गया |
बड़ी आस थी कि धूप निकल आएगी
दुख की छांव को अलविदा कह जायेगी
काले बादलों ने भी अपना रुख बदल लिया
यूं बरसे कि सूरज उछल गया |
आसमां तो नहीं मैं, नादान सा इंसा भर हूं
इक अनजानी डगर अधूरा सा सफर हूं
बूंदों ने इस कदर क्यूं चल अचल किया
घर का कच्चा आंगन दल दल में बदल दिया
अधकिली सी धूप को स्याह अंधेरा बदल गया
सूरज निकलते निकलते अपना रुख बदल गया |